विश्वास हूँ मैं, वहम नहीं
तुम तोड़ न पाओगे।
जांच परख लो तौल कसौटी
खरा ही पाओगे।
धीरज में जो टूट गई हो
मैं वो डोर नहीं हूँ।
डरकर हारे मुसीबतों से
मैं वो शोर नहीं हूँ।
ज्वारभाटे जीवन के मुझको
जब भी जाते है झकझोर,
दूर भले हो रहे किनारे
पर अविरल पाओगे।
हरियाली के स्वर्णिम मोती
सब पतझड़ लूट गए।
उजली रातों के सपने
तम कबके तोड़ गए।
पल भर के उजियारे जीवन
जब देते है संत्रास
तुहिन कणों में बिखरा लेकिन
जगमग ही पाओगे।
-डॉ वर्षा चौबे
भोपाल