कहाँ खिला सुंदर एक गुलाब
सबके पास कहाँ बचा
वह भाव जिसे हम
प्यार अगन वन का कहते
यह कोई नगर कल से सूना
किस कोलाहल के पास ठहरकर
यह मन का सागर
अब कहाँ शांत स्थिर है
रात्रि पहर का सन्नाटा
खेतों में फैला उजियारा
होली के रंगों से
सराबोर यह तन मन सारा
खूब अकेली किसने
उसका रूप निहारा
कितने पल गुजर गये
यह एकांत पहर अपना है
आज वसंत की बगिया में
एक गुलाब
और एक चमेली
महक रहे हैं
-राजीव कुमार झा