इश्क़ में लोग यूँ चाल चलते रहें
आजमाते रहे दिल बदलते रहे
वक़्त ने भी मुझे यार परखा ग़ज़ब
आह भरते रहे हाथ मलते रहे
उम्रभर एक ख़्वाहिश बनी रह गयी
ग़म की गर्दिश रही ख़्वाब पलते रहे
रूह को न मिला एक पल का सुकूँ
आह की आग़ में रोज़ जलते रहे
ढह गई आरजू इक छुवन के बिना
सिर्फ़ जज़्बात में हम सम्हलते रहे
हो गये ग़ुम मेरे क़हक़हे प्यार के
थे ग़लत पर उन्हीं पे मचलते रहे
एक अर्से से रकमिश है तन्हा यहाँ
दिल लगा लोग दिल को कुचलते रहे
-रकमिश सुल्तानपुरी