हिंदू मान्यता के अनुसार एकादशी तिथि के व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इस दिन व्रत करने से सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। वर्ष भर में पडऩे वाली 24 एकादशियों में आमलकी एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा का भी विधान है।
पंचांग के अनुसार इस बार आमलकी एकादशी सोमवार 14 मार्च के दिन मनाई जाएगी। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है और साथ ही भगवान विष्णु को भी आंवला अर्पित किया जाता है। इस दिन आंवला को स्वयं ग्रहण करने का भी नियम है। कहते हैं इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ने और श्रवण से ही व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी तिथि 13 मार्च सुबह 10:21 बजे से शुरू होकर अगले दिन 14 मार्च दोपहर 12:05 बजे तक मान्य रहेगी। उदया तिथि के अनुसार एकादशी का व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा। वहीं व्रत का पारण करने का शुभ समय 15 मार्च सुबह 6:31 बजे से लेकर सुबह 8:55 बजे तक रहेगा।
व्रत कथा
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए थे। एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हो गए। भगवान विष्णु को सामने देख ब्रह्मा जी की नेत्रों से अश्रु बहने लगे और ब्रह्मा ली के ये आंसू नारायण के चरणों में जा गिरे। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी की आंखों से गिरे ये आंसु आंवले के पेड़ में बदल गए।
ऐसा होता देख भगवान विष्णु ने कहा कि आज से फल मुझे अत्यंत प्रिय होगा और साथ ही इसका पूजा की जाएगी। अमालकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से साक्षात मेरी ही पूजा होगी। उस भक्त के सारे पापों का नाश हो जाएगा और मृत्यु के बाद मोक्ष की ओर अग्रसर होंगे। तभी से अमालकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है और इस दिन भगवान विष्णु को भी आंवला अर्पित किया जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन खुद भी आंवला ग्रहण करना शुभ फलदायी होता है।