मानव तेरी नादानियां अच्छी नहीं लगती
नफरत की चिंगारियां अच्छी नहीं लगती
थाती, राखी, बिंदी, महावर सब रूठ गए,
सरहद पर कुर्बानियां अच्छी नहीं लगती
काले-काले धंधे तेरे, काले तेरे करतूत,
बाबा तेरी रंगरैलियां अच्छी नहीं लगती
हवस, दरिंदगी, कोर्ट, पैसा और जमानत,
कफन में लिपटी बेटियां अच्छी नहीं लगती
टीआरपी के मौसम में जनता हुई गुमराह,
खबरों की गुस्ताखियां अच्छी नहीं लगती
ये शोहरते, अट्टालिकाएं,मशीनें, मास्क के पैकेट,
धुंओं में झुलसती जिंदगियां अच्छी नहीं लगती
घर की जिम्मेदारियां जब आफत बन जाए,
शहजादी तेरी शोखियां अच्छी नहीं लगती
-सत्यम भारती
भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र,
परास्नातक द्वितीय वर्ष छात्र,
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी,
नई दिल्ली-110067