प्रेम की सड़कें ज़रूरी नहीं
कि सीधी और सपाट ही हो,
कभी कभी सीधी और सपाट सड़कें
दिखने में ख़ूबसूरत ज़रूर होती हैं
मगर अंदर से होतीं हैं
भयावह
जो चुभती हैं पैरों में
जिससे कभी-कभी घायल
तो कभी कभी चोटिल हो जाते हैं!
वैसी ही होती हैं
कुछ लड़कियाँ
सड़कों जैसी
सीधी और सपाट
जिस पर चल कर क्षणभंगुर प्रेमी
उसको सकरा कर देते हैं
वो पकने की बजाय दिन पे दिन
और बदसूरत हो जातीं हैं
उनकी देह पर दिखते हैं
रोज़
छलने के छाले
वो बिलखती हैं, वो कुंठित होने लगती हैं
वो बहती रहती हैं अपने ग़म में
तो कभी ठहर जाती हैं
और तबतक ठहरी रहतीं हैं जबतक सड़ ना जाएं
बिल्कुल सड़े पानी के जैसे
धीरे धीरे उन्हें हो जाती है ख़ुद से नफ़रत
हर ग़लती, हर शह में ढूंढती फिरती हैं
अपना अस्तित्व
या फ़िर उजड़ा
अस्तित्व
-विभा परमार