नदी पानी नहीं देती किनारे भी सताते हैं
हंसी ख़ामोश रहती है तो आंसू मुस्कुराते हैं
हमें क्यों धौंस देता है अरे जुगनू चला जा तू
उजाले और भी हैं जो हमारे पास आते हैं
मुहब्बत की ज़मीनों पर कोई झगड़ा नहीं होता
जहां मंदिर बनाते हैं वही मस्जिद बनाते हैं
ज़रूरतमंद लोगों को सहारा कौन देता है
ज़मीं को प्यास लगती है तो बादल भी सताते हैं
मियां मैं बेवफा हूं बेवफाई करके आया हूं
नहीं आता मुझे कैसे मुहब्बत को निभाते हैं
कभी तन्हा नहीं चलती हमारी नाव पानी में
नदी में तैरते दीपक हमारे पास आते हैं
अरे इस ज़िंदगानी के सफ़र की बात क्या करना
कई भटके मुसाफ़िर हैं मगर रस्ता बताते हैं
-पुष्पेन्द्र सिंह ‘उन्मुक्त’
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश