कौन कहता है कि आता है नहीं मधुमास अब?
गाँव में फैली है खुशबू, महकती है साँस अब।
शीत की चादर हटाकर, पेड़ अब तो जग गये।
आम-लीची हँस रहे हैं मंजरों से भर गये।
पाखियों के स्वरों से है गूँजता आकाश अब।
खेत सरसों के हैं ये या जुगनुओं का कुंभ मेला।
या कि लहराता समंदर क्षितिज तक पसरा है पीला।
आँख मूँदो तो भी होता बसंती एहसास अब।
रोज कटती डालियों में भी तो जीवन शेष है,
रुक न जाना जिंदगी, ऋतुराज का संदेश है
ठूँठ में निकली है कोंपल इस ऋतु में खास अब
-अंजना वर्मा