इस तरह आस में मिलने की मचलते क्यूँ हो?
आंसुओं बर्फ़ के गोलों से पिघलते क्यूँ हो?
हमने बेसाख्ता हर लम्हा उनको चाहा है,
प्यार पूजा है जहां वालों यूँ जलते क्यूँ हो?
जलना फ़ितरत ही नहीं आशिकों की किस्मत है,
बिजलियाँ गिरती हैं हम पर यूँ संवरते क्यु हो?
तिश्ननागर जाम सुराही है कहे साकी से,
ले के ये जाम मिरी राह निकलते क्यूँ हो?
आपको क्या पता किस हाल में बीते ये दिन,
दायरों से घिरी तहज़ीब में रहते क्यूँ हो?
मुश्किलें दोनों तरफ़ हैं यह माना हमने,
इनको ही सोच परेशान से रहते क्यूँ हो?
भारती जो भी यहाँ पाया खो के पाया है,
कोई वादा न लिया, आप सहमते क्यूँ हो?
-पीएस भारती