मैं
क्यों
तुम्हारा इंतज़ार करूँ?
मेरा साथी
तो मेरा
पदचाप है
जो कभी मुझे
अकेला
नहीं छोड़ता
और तुम भी तो
एकाकार हो जाते हो
मेरा पीछा
करते करते
ताकि ढूंढ सको
मुझे
कि मैं
कहाँ-कहाँ
भटक रही हूँ
तुम कब से
तलाश रहे हो मुझे
इतना एहसान ही
काफी है
कि एक पदचाप
मंडराता रहता है
मेरे आस पास
तलाशता रहता है खुद को
मेरे, अस्तित्व में
-पूनम शर्मा