तुमने कितना कैद करना चाहा हमें
कि हर जगह लगा दिये सांकल
तुम करना चाहते थे
तितली को डब्बे मे बंद
तितली चाहिए थी तुम्हें
पर उसे उसका बगीचा
नहीं देना था
उसे फूल भी नहीं देने थे
तुम्हें प्यारी लगी चिड़िया
तो चिड़िया को पिंजरे में डाल दिया
छीन लिया उसका आकाश
उसके पंख हो गये बेजान
औरत ने ज़रा
दहलीज क्या लांघ ली
कि अपहरण हो गया उसका
हमेशा से होता रहा है यह
और आज जब वह नाप रही है
अपने पैरों से दुनिया
उड़ रही है अछोर आकाश में
दिख रहा है उसका विजयी
मुस्कुराता चेहरा
तो तेज़ाब फेंककर
तुम झुलसा देते हो उसे
या कर देते हो उसके साथ दरिंदगी
लेकिन इतना होने के बाद भी
वह बढ़ती ही जा रही है आगे
पीछे मुड़कर नहीं देख रही है
याद रखो
कि पीछे अब नहीं हटेंगे
उसके आगे बढ़े हुए पैर
क्योंकि उसे अब
तुम्हारी धमकियों की परवाह नहीं
-शेफालिका कुमार
न्यू जर्सी, अमेरिका
शेफालिका कुमार, प्रवासी कवयित्री एवं कथा लेखिका एवं अनुवादक हैं । हिन्दी एवं अंग्रेजी में लेखन। Indian Literature, Rock Pebbles , Bizz Buzz, पाखी , कथाक्रम, चौराहा, कादंबिनी समेत कई अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । संप्रति न्यू जर्सी में निवास।
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