इश्क़ है अपने वतन से
इसकी मिट्टी की खुशबू से
इसके पहाड़ों की हरियाली से
इसकी नदियों की कल कल से
इसके खेतो पर लहराती फसलोसे
इसके जर्रे जर्रे से
आने वाली महक से
हाँ इश्क़ है अपने वतन से
इसके रंग-बिरंगे त्योहारों से
इसकी सभ्यता, संस्कृति से
इसकी अनेकता में एकता से
इसकी हर बात की बात से
हाँ इश्क है अपने वतन से
इसके रेतीले धोरो से
इसके धवल हिमालय से
दक्षिण में डूबते सूरज से
इसके पूरब में उगते सूर्य से
हाँ हाँ इश्क है अपने वतन से
-गरिमा राकेश गौतम
शिक्षिका, माँ भारती शिक्षण संस्थान