उसे फांसी दो- राजन गुप्ता जिगर

तुम नहीं अकेली आज बे-आबरू हुई
क्या यहां मानवता आज बेजार नहीं,
जिसकी अस्मत लुटी सरेआम आज
क्या वह इंसाफ की हकदार नहीं
फांसी दो, उसे फांसी दो

चीरहरण को घूम रहे सब दुःशासन यहां
आज जहां में कोई भी गोपाल नहीं,
ना जाने कब आएगा तू किशन-कन्हइया
द्रोपती पर आज कोई क्यूँ उपकार नहीं
फांसी दो, उसे फांसी दो

इज्जत लूटते मुझको मरते सब देख रहे
आगे आकर कर रहे सियासत बड़े-बड़े
कैसी संवेदनहीन मानवता हो गई आज
फिर भी कोई आज यहां शर्मसार नहीं।।
फांसी दो, उसे फांसी दो

उसने जिस्म से बस खेला ही नहीं
मेरे रूह को उसने बार-बार चीरा है,
उसकी आँखों में वहशत और हवस थी
मेरी आँखों में जीवन भर के लिए पीड़ा है
फांसी दो, उसे फांसी दो

उस दरिंदे शर्मनाक हरकत वाले को
उसे इस पाप का आज अंजाम दो,
वह इंसान नहीं इक वहशी दरिंदा है
यह किसी भी माफी का हकदार नहीं
फांसी दो, उसे फांसी दो

-राजन गुप्ता जिगर