कितना प्यार है न
तुम्हारे दिल में मेरे लिए
महफूज़ रखना चाहते हो
मुझे, तुम हर बला से
फिर चाहे वो शीतल हवा हो
या कड़कती धूप
कपकपाती ठंड हो या
बारिश की भीगी गीली नमीं
तुम्हारा साया, तुम्हारा स्पर्श
और तुम्हारी आगोश का दायरा
चारों ओर से मेरे जिस्म को
एक क्वच की भांति ढांके रखता है
हाँ, कह सकती हूं मैं
मुकम्मल है मेरा और
तुम्हारा इश्क़… एक दूजे से
सौभाग्य की सिंदूरी आभा
से दमक रही हूँ मैं
तुम बिन मैं नहीं न मेरे बिन तुम
गवाह हैं चारों दिशाएं
ये खुला आसमान ये चांद-तारे
कि आजीवन महकेंगे अब
मोहब्बत की अनूठी खुशबू से हम
-निधि भार्गव मानवी