घरों के सपने सजाने में कटे लाखों शजर
परिंदे बेघर हुए तब बना जाकर इक शहर
कट रही थीं डालियाँ वो सह रहा चुपचाप था
काट ही डाला तना अब कौन पीयेगा जहर?
क्या बहारें आयेंगी जब पेड़-बूटे हैं नहीं
चार दीवारों में रहतीं बंद साँसें हर पहर
कभी था बरगद भी बाबा और मामा चंद्रमा
टूटते इंसा के रिश्ते कौन लेता है खबर?
कई झीलें दफन हैं इमारतों के पग तले
सहमकर बह रही नदियाँ खो गई उनकी लहर
-अंजना वर्मा
अंजना वर्मा समकालीन हिन्दी साहित्य की सुपरिचित कवयित्री, कथा- लेखिका एवं गीतकार हैं। नीतीश्वर महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार) में हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं प्राचार्य रह चुकी अंजना वर्मा की विविध विधाओं में 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन्हें कई सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। संप्रति साहित्य- सृजन में संलग्न।