घर वास का चौदहवां दिन- मनोज शाह

घर वास का चौदहवां दिन
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी तो
मर्यादा, आज्ञा, धैर्य, संयम, संकल्प,
मातृत्व, राजत्व पालन करते हुए,
अपनी लीलाएं, संस्कार, पराक्रम, पुरुषार्थ,
वैभव, विजय, सत्यपथ का परिचय दिया
और चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण किया

हम चौदह दिन में ही घबरा गए?

हे मानव जाति! आपको याद होगा!
समुंद्र मंथन के बाद चौदह रत्न निकले थे
हलाहल, घोड़ा, एरावत,
कौस्तुभ मणि, कामधेनु, कल्पवृक्ष,
देवी लक्ष्मी, अप्सरा रंभा, परिजात, वारुणी देवी,
शंख, चंद्रमा, धन्वंतरि देवी और अंत में अमृत

जो जिसके हिस्से में आया ले गए
वैसे तो धन्वंतरि देवी तो अमृत की घड़ा को
दैत्य राक्षसों में बांटने लगे थे
शुक्र है जय श्री कृष्णा का जो ,
ऐन मौके पर आ गए थे

राहु के गले तक पहुंच भी गया था अमृत
अपने चक्र से राहु का सिर अलग कर दिया,
जो कि बन गया राहु केतु ग्रह जो अभी भी,
हमें करते हैं भ्रमित

बदल दिया गया अमृत का घड़ा
बांट दिया गया वारुणी देवी का घड़ा
अगर सभी में बांटना शुरू कर देते हैं अमृत का घड़ा
मनुष्य असीमित लेते इतना लेते कि
अमृत पीकर ही मरने लगते
हलाहल तो सीमित में लेते हैं

चौदह भुवन, चौदह लोक के रखवाला,
हमें जरूर रक्षा करेंगे
जय श्रीराम ने चाहा तो, जरूर करेंगे,
हम सब अयोध्या के चौदह कोसी परिक्रमा

वैसे भी, मृतक शरीर के निर्गुण आत्मा
यूं ही बरबराती है, अबोध गीत गाती है,
करती है अपने क्षेत्र की भयानक परिक्रमा

इसलिए वह…
पूर्णमासी के चांद हो या चौदहवीं का चांद,
ईद के चांद बनकर बहुत कम नजर आते हैं

-मनोज शाह मानस
सुदर्शन पार्क, मोती नगर
नई दिल्ली