चली बयार प्यार की मीठी आँसू छलक गये
पड़ी फुहार रंग की तन पर मन से बहक गये
गले लगाया जब तितली ने उड़ते आली को
लगी आग भीगे तन में और’ शोले दहक गये
खिला फूल जीवन कानन में मधुप हुआ पागल
घुली फ़िजा में संदल साँसें दो दिल महक गये
रखा पाँव दहलीज पर उसने खुशियाँ बौरायी
जले दीप नयनों के घर में पंछी चहक गये
बढ़ी पेंग खुशियाँ निशदिन बहियों के झूले पर
बजी बावरी पायल मनहर घुँघरू खनक गये
जले दीप मन आँगन में मुस्काया उजियारा
नचे मोर प्रेम बगिया में पाँव भी थिरक गये
-डॉ उमेश कुमार राठी