आधी रात है
हम जाग गये अब
तत्पर होकर
उमग रही सांस साँझ से
नींद से बाहर आकर
सितारों ने तुमको पास बुलाया
कहीं दूर नदी में
चाँद उतर आया
फिर उसी हवा ने
गले लगाया
यह अधीर मन कितना चंचल है
उतना ही कोमल है
अब यह आकाश ही
अंबर है
अभी बहती एक नदी आयी है
उसके मीठे पानी का कलकल स्वर
गहन नींद में
तुम सोयी हो
सिरहाने पर सपनों का सौगात समेटे
सारे मन में किसको आज समेटे
-राजीव कुमार झा