कहीं मातम मना है औ कहीं त्यौहार क्यों है
कहीं सुलझे हुये दिल औ कहीं मंझधार क्यों है
जहां में प्यार का पैगाम दे भेजा गया था
दिलों में आज नफ़रत की खिंची दीवार क्यों है
चिरागों को निगल जाते यहाँ रौशन अंधेरे
सुबह से ही सिमटकर भागता संसार क्यों है
नहीं जिसका रहा माली भला फिर कौन पूछे
कि पत्ता हर कली से आजकल बेजार क्यों है
कहीं अच्छा नहीं होता है क्या सारे शहर में
गुनाहों की खबर से ही भरा अखबार क्यों है
छिपाए हाथ में खंजर कि मीठा बोलते हैं
यहाँ हर आदमी का दोहरा किरदार क्यों है
नहीं पलती दिलों में आजकल सबके हिफाजत
कि हर इक आदमी की भावना बीमार क्यों है
-भावना दीपक मेहरा
आगरा