नाजुक पंखों में जमा
रंग और बेचैनियां
लिये तितली
उड़ जाती है आकाश में
आकाश की नमी
और नीलेपन से, हिस्सा
बंटाने को
मिला देती है अपने पंखों
के तमाम रंगों में से जरा से रंग और
बेचैनियों के शेड्स
फिर कोई कथा शुरू होती आकाश से
बारिश की बूंदों के संग या सूरज की
किरनों के संग या घोर अन्धेरे में चमकती
बिजली
आकाश के
हृदय से धरती की अतल गहराइयों तक पहुंचती
फिर समर्पण का छद्म स्वप्न
शून्य नहीं रह पाता
ढक लेता है शाखों की नमी को
-वाज़दा खान
चित्रकार-कवयित्री
परिचय-
अनेक एकल व सामूहिक प्रदर्शनियां, आर्टिस्ट कैम्प और कार्यशालाओं में भागीदारी। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित, दो कविता संग्रह जिस तरह घुलती है काया (भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली), समय के चेहरे पर (शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली) और दो कविता संग्रह प्रकाशनाधीन।
गढ़ी स्टूडियो स्कॉलरशिप, ललित कला अकादमी, दिल्ली। सीनियर फेलोशिप (पेन्टिंग) संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार।
शताब्दी सम्मान, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन। रश्मिरथी पुरस्कार (सम्मपूर्ण कलाओं के लिये)। हेमन्त स्मृति कविता सम्मान, त्रिवेणी कला महोत्सव पुरस्कार।
पता-
वाज़दा ख़ान
बी-87 (प्रथम तल), सेक्टर-23
नोएडा- 201301
ई-मेल: [email protected]
वाज़दा खान की पेंटिंग्स-