तुम कोई सुंदर कविता हो
जीवन में सपनों को उकेरती
शब्दों में सारे मन के भाव पिरोये
किस हलचल में थमकर
मन की आहट को किसने देखा
बारिश में चमक रही जीवन की रेखा
कितने काले बादल आये
तुमको खूब अकेला मन यह भाये
चार पहर उनींदी आँखें
अब खूब विकल मन की शाखें
भटक रहा राहों में फागुन
कहाँ हवा हँसती है
क्या कहती है
कविता आज सुनाओ
सारी खुशियाँ पाओ
यह नीम की डाली
दूध की छाली
शाम में
हँसी मजाक करती साली
कविता के संग गेहूँ की बाली
-राजीव कुमार झा