आफ़तों में भी उत्सव के गीत हम गाते रहे
हर सितम के दर्द को हँसकर छिपाते रहे
चलने को मजबूर पैदल आज हज़ारों मील वो
कामगार जो कंपनियों में गाड़ियाँ बनाते रहे
करते जमाख़ोरी जो कुदरती आपदा के समय
वो मुनाफ़ाख़ोर हमें वतनपरस्ती सिखाते रहे
जी हुज़ूरी था ज़रूरी सम्मान पाने के लिए
हम मेहनत और किस्मत को आज़माते रहे
सत्ता का नशा इतना ग़ैर इंसानी है ‘तारांश’
लाखों मर गए पर आँकड़े हज़ारों बताते रहे
-सूरज रंजन ‘तारांश’