दामन-ए-दिल- शिवोम मिश्रा

तंग कितना भी करे झूठ तो करने देना
तुम मगर सच की ज़िया ख़ुद में उतरने देना

नाम बदनाम न कर जाए कहीं अहल-ए-हवस
दिल की चौखट पे इसे पांव न धरने देना

दस्त-ए-क़ुदरत का तमाशा है बड़ा बे-मिसाल
ख़ुद मे मुर्दा है अगर लोग तो मरने देना

कौन लौटाता है वादों की उधारी ले कर
गर मुकरता है तो फिर उस को मुकरने देना

झूठ कितना भी लगा ले भले सुर्ख़ाब के पर
सच की चिड़िया के मगर पर न कतरने देना

डाल कर नफ़रतों की आग पे थोड़ा पानी
रंग हर ओर मोहब्बत का बिखरने देना

दामन-ए-दिल भले ख़ाली है तुम्हारा अनवर
आरज़ू दिल की कभी ऐसे न मरने देना

-शिवोम मिश्रा ‘अनवर’
पीलीभीत, उत्तर प्रदेश