उम्र ज़ाया कर दी जिन्होंने,
सिर्फ़ सपने संजोने में।
है यथार्थ का भान उन्हें भी,
दिल के किसी कोने में।
उम्र गुज़ार दी जिन्होंने,
और किसी का होने में।
है एहसास उन्हें खुद को खोने का,
दिल के किसी कोने में।
आग लगा दी जिन्होंने,
औरों के घरौंदों में।
है बेघर होने का एहसास उन्हें भी,
दिल के किसी कोने में।
जज़्बात जो नाकाम रहे,
यहाँ मुकम्मल होने में।
करते हैं फरियाद आज भी,
दिल के किसी कोने में।
कोरोना से सब जूझ रहे,
आज कोने कोने में।
है प्रदीप्त जिजीविषा फ़िर भी,
दिल के किसी कोने में।
कुछ भी नहीं रखा बन्दे,
यूँ टुकड़ा टुकड़ा होने में।
आओ विशबन्धुत्व के गीत सजा,
दिल के किसी कोने में।
-ज्योति अग्निहोत्री ‘नित्या’
इटावा, उत्तर प्रदेश