मैंने उन्हें विपत्ति के समय खत लिखा
जो अपने थे
पहला जवाब आया
थोड़ा धीरज रखिए
सब ठीक हो जाएगा
वर्षों बीत गए
हालात जस के तस
मैंने उन्हें दूसरा खत लिखा
कुछ दे नहीं सकते तो
सांत्वना ही दे दिजिए
जवाब आया मैं आपके
साथ हूं और साथ में मेरी
संवेदनाएं भी
तब लगा जैसे किसी ने
गाल पर चांटा जड़ दिया हो
मुफ्त में मिलने वाली
संवेदनाओं का भी
इन दिनों कोई महत्व नहीं
शुभकामना के माफिक
ढ़ेरो मिल जाती है
यत्र तत्र सर्वत्र
-भुवनेश्वर चौरसिया ‘भुनेश’
गुड़गांव, हरियाणा