जीवन परिपथ को जब करता
घर का द्वार निराश
आभासी दुनिया में करता
निशदिन प्यार तलाश
तृप्ति बने आधार हृदय की
प्रीत करे सत्कार
फूल तपश में फिर भी लाता
बारंबार पलाश
प्रेम अचानक कर देता है
पैदा बड़े बवाल
यह समाज फिर कर देता है
उन पर खड़े सवाल
भावुक होकर हर दिल कहता
ऐसा होता काश
आभासी दुनिया में करता
निशदिन प्यार तलाश
विचरण करते स्वप्न नयन में
भरते नई उड़ान
आते हैं सौ प्रश्न हृदय में
लेकर कई उफ़ान
मूरत में सूरत को तकता
अक्सर संगतराश
आभासी दुनिया में करता
निशदिन प्यार तलाश
प्यार समर्पण करती सरिता
देकर जल उपहार
सिंधु मगर कब माना करता
नदिया का उपकार
दंभ बढ़ा लेता जब सागर
करता ज्वार विनाश
आभासी दुनिया में करता
निशदिन प्यार तलाश
-डॉ उमेश कुमार राठी