बार-बार तिरा फ़ोन को देखना
मेरा उत्तर नहीं है फिर सोचना
मैं भी बेचैन हूँ तू भी बेचैन है
बात करना मगर दिल को रोकना
है जिस फोन में मेरी तस्वीर भी
इधर-उधर देखके उसे चूमना
जब फ़ोन मेरा अगर न आये तो
बेवजह ही फिर फ़ोन को फेंकना
ख्वाब मिरे ओढ़कर तुम जो सो गए
बेचैन होकर रात वो जागना
है प्रेमसागर तो बताओ ‘मंजर’
कौन न चाहे फिर इसमें डूबना
-मनोज मंजर