मेरी मोहब्बत की सौगात पहुँचती नहीं
जाने क्यों उन तक मेरी बात पहुँचती नहीं
हर रोज़ भेजती हूँ चाँद से संदेशा दिल का
बेवफ़ाई कर तुम तक ये रात पहुँचती नहीं
तकलीफ़ देती है बेरुखी ये तेरी जानेमन
सच कहो क्या मेरी अरदास पहुँचती नहीं
गुम हो कहाँ तुम भूल राब्ता अपना सखे
जो तुम तक मेरी ये आवाज़ पहुँचती नहीं
क्या है जो तुझे रोके मुझ तक पहुँचने मे
क्यों मेरी तकलीफ़ की आग पहुँचती नहीं
-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ