बाल-ग़ज़ल- डॉ भावना

बाल-ग़ज़ल (मेरे घर के सदस्यों की तरह रहने वाला खरगोश कृष्णा-श्वेता को समर्पित)

बहुत चंचल है ये खरहा अजब करतब दिखाता है
जो चुप रहके भी आँखों से बहुत कुछ बोल जाता है

सुबह की नींद से वो इस क़दर मुझको जगाता है
छलागें मार करके वो मेरे बिस्तर पे आता है

वो अक्सर घूमता है पास आकर इस तरह मेरे
जो खुश होता है अपने साथ में सबको नचाता है

अगर तुम घास दोगे तो वो चावल-दाल मांगेगा
जुगत हरदम वो अपनी ज़िद को पाने में लगाता है

पकड़ने को जो दौड़ो तुम नहीं वो हाथ है आता
कहीं छुपकर कहीं रुककर बहुत उल्लू बनाता है

-डाॅ भावना