नव चिंतन भर नेत्र खुलें जब
उस दिन निशा नहीं होगी
कितने ही पथ मोड़ पड़े पर
भ्रम की दिशा नहीं होगी
नवल प्रात की मलय सुगंध
उगा सूर्य यह बहती मन्द
शनैः शनैः कोहरा पिघलेगा
हृदय मिलेंगें सब निर्द्वंद
रजत छत्र पर अब भारत के
काली घटा नहीं होगी
आशामय विश्वास सभी का
सरल चित्त निस्पंद सलीका
साथ सभी को लेकर चलना
कुन्द पड़ी जागेगी प्रतिभा
राष्ट्र चेतना में अब कोई
बीती प्रथा नहीं होगी
निर्धनता निर्वाण प्राप्त हो
कर्कशता की लौ समाप्त हो
आएं वो घर छोड़ गए जो
समरसता हो हृदय तृप्त हो
सभ्य सामयिक संरचना की
कुंठित कथा नहीं होगी
होगा दीपित बचपन यौवन
मूरत बन पाथर हो रोशन
सपनों के संकल्पों से युत
देश के वैभव से उजला मन
दो विधान की, दो निशान की
दारुण व्यथा नहीं होगी
-पीएस भारती