माँ ही गंगा, माँ ही गीता मेरी माँ में बसी कुरान,
छू लेती हूं उनके चरणों को हो जाता है चारों धाम
मेरी माँ से मैंने हंसना सीखा और सीखा है रोना,
औरों की खुशी में खुश होना उनका दर्द समझना
जब मेरी माँ बोलती है मुख से अमृत झरती है,
जब जब वो रोती है आंखों से मोती झरती है
करूणा की मूर्ति दिखती ममता की है सागर,
दर्द अपना छिपाकर रखती नहीं करती उजागर
अतिथि देवो भवः की आदत हमको भी दिखलायी,
कर्म पथ पर अडिग रहना हमको भी सीखलायी
किसी माँ की ममता का कोई मोल नहीं होता,
माँ के बिना कुछ नहीं उसके जाने के बाद समझता
-दीपमाला पाण्डेय
रायपुर, छत्तीसगढ़