मुझे अमीर न समझो,
एक एक ईंट का कर्ज बाकी है।
बिल्डिंग बना तो लिया हूं,
पर लोन की किस्त अभी बाकी है।
दीवारों से अमीरी का आंकलन कैसे,
ये घर बस अमीरी का एक झांकी हैं।
सपनों की नैया में तैरता रहा हूं,
पर अमीर बनना अभी बाकी है।
सरकारी ऐलान से तो दूर हूं,
मिडिल क्लास में मुझे आंकी हैं।
सोचता रहा कुछ दान करूं, पर,
खुद की परवरिश अभी बाकी है।
मैं शान से दिखाता फिरता हूं,
एक दीवार बनाना बाकी है।
रोज सोचता हूं,कर दूं, पूरा,
पर अरमान हमेशा बाकी है।
चूमती है मिडिल की ताज मुझे,
स्कूल की कर्ज कुछ बाकी है।
हम जानते हैं कैसी चली है गाड़ी,
महिनों की पालिसी भरना भी बाकी है।
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़