भरोसा मैं करूँ किसपे मुख़ालिफ़
ज़ुबाँ कब कौन सी कह दे मुख़ालिफ़
मुहब्बत हो गयी काफ़ी सनम से
चलो अब देख लें बनके मुख़ालिफ़
हमेशा मानता था दोस्त जिनको
मुझे वो आजतक समझे मुख़ालिफ़
वफ़ाशत काम न आई कोई भी
हजारों दे गए सदमे मुख़ालिफ़
कि सच का आईना लाएं कहाँ से,
मुखौटा जब नया पहने मुख़ालिफ़
लगी जब इश्क़ में ठोकर दुबारा,
अचानक टूटकर बिखरे मुख़ालिफ़
सज़ा दूँ या करूँ दीदार रकमिश,
नजऱ की गल्फ़ में उतरे मुख़ालिफ़
-रकमिश सुल्तानपुरी