मैं हूँ कौन बताये मुझे,
कौन सा घर मेरा बताये मुझे,
मैं सदियों की सताई हूँ कोई तो अपनाये मुझे,
मैं बेकार पत्थर नहीं जो बिखर जाऊं,
मैं धूप की तपती रेत हूँ एक छांव दिलाओ मुझे,
मैं हर बार तोड़ी गई सबकी खुशियों में रौंदी गयी,
मैं फूल नहीं हूँ कि बस मुरझा जाऊं,
मैं खुसबू हूँ दो बदन की न बुझाओ मुझे,
मैं खुशियों की विरासत घर का चिराग हूँ,
मैं बिटियां हूँ तुम्हारी अपनाओ मुझे
-मनोज कुमार