यह चेहरा
कितना जाना पहचाना
रोज आईने में
इसी भाव को लेकर आना
सबके मन का सच्चा भाव
किसी का धन बन जाता
किसी विरह का गीत
सदा वह चुपचुप आकर गाता
बहुत पास से देखा तुमको
मन की मधुमय घाटी में
तुम फूलों की रानी
भूली बिसरी एक कहानी
उसे सुनाया किसने
तुमने देखा उसी राह में
यह धूप कहाँ आयी है
माटी पर संदेशा लायी है
कितनी दूर ओ रंग बसंती
मन की हरियाली खेतों में
फैली है
-राजीव कुमार झा
परिचय-
राजीव कुमार झा
शिक्षा-एमए जनसंचार, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली
टेलीविजन कार्यक्रमों के निर्माण निर्देशन में कुछ काल तक संलग्न, आकाशवाणी के फीचर कार्यक्रमों का लेखन, आजकल और कादंबिनी में कविताओं का प्रकाशन