यादों के घने जंगल में
थोड़ी देर पहले बारिश थमी
किस दिशा में इन्द्रधनुष उग आया
मन की नदी किस मिठास से भरी
नाव को हिलोरों में लेकर
तट के पार चली गयी
आकाश कितने सपनों को समेटता
अपना रंग बदलता रहता
जाड़े का मौसम
बसंत के आते ही बीत जाता
ग्रीष्म की तेज धार में
जंगल सबको सुहाता
आकाश को चाँद सितारों से सजाता
बारिश में हवा को राह
बादल अब बताता
तब मन में
रिमझिम फुहारों को लेकर
फिर यादों का बरसात आता
-राजीव कुमार झा