यादों के मेले- डॉ उमेश कुमार राठी

नमन सुमन का हो जाता है
कहना कब पड़ता है
जिस आनन में हो आकर्षण
धोना कब पड़ता है

यादों के मेले लगते हैं
दिल के गलियारे में
सपन नयन में आ जाते हैं
जगना कब पड़ता है

प्यार प्रणय मधुमय आलिंगन
तीर समझते दोंनों
पीने को मधु नीर नदी का
बहना कब पड़ता है

प्यार समर्पण कर देता है
जब माधुर्य मिलन हो
प्रिय प्रवास के लिये कदाचित
रुकना कब पड़ता है

मूक अभीप्सा की भाषा को
नयन समझ लेते हैं
अभिलाषा की परिभाषा को
लिखना कब पड़ता है

रत्नों का राजा कहलाना
जो रखता गुणवत्ता
उद्दीपित करने को हीरा
जड़ना कब पड़ता है

स्पर्श मिले जब शीत पवन का
हर्षित होता बरगद
खुशियों की खातिर तरुवर को
चलना कब पड़ता है

मीत दिवाकर आ जाता है
घर के दरवाजे पर
उसकी आभा को छलनी से
तकना कब पड़ता है

-डॉ उमेश कुमार राठी