स्वर्ग धरती को बनाने सुरमयी सुरसाज आया
लो सखी ऋतुराज आया
गूँथ ली वैणी सुमन से चल गयी शीतल पवन
हो रहा मौसम सुहाना दूर है दिल से चुभन
मांगलिक सन्देश देने प्यार का परवाज आया
लो सखी ऋतुराज आया
काँचुकी की डोर बाँधी ओढ़ली धानी चुनर
नित दिखाता रूपसी शृंगार भी अपना हुनर
साज छेड़ा जब हवा ने माधुरी अंदाज आया
लो सखी ऋतुराज आया
कोपलें गाने लगी हैं तरु लता की शाख पर
पिय निगाहें थम गयीं हैं आज चंचल आँख पर
मानसी मंदाकिनी में रागिनी का राज आया
लो सखी ऋतुराज आया
भावना अनुभूतियाँ अभिव्यक्त सारी कर चुकी
कामना की सीपियाँ अनुरक्त अपनी बन चुकी
प्रेम की उर वीथिका में गूँजता भृँगराज आया
लो सखी ऋतुराज आया
-डॉ उमेश कुमार राठी