हर घड़ी है सामना
संवाद करती याचना से
लौट आ मेरे बटोही
याद कर सद्भावना से
बढ़ गयीं विष बेल जैसी
इस बदन में वेदनायें
लुप्त होती जा रहीं हैं
मानसिक संचेतनायें
प्यार की इस वल्लरी को
मुक्त कर दे यातना से
लौट आ मेरे बटोही
याद कर सद्भावना से
भेजना मत साजना तू
खत मुझे अब लाल पीले
पढ़ लिया जब से इन्हें तो
हो गये हैं गाल गीले
अश्क़ करते हैं निवेदन
मत विमुख कर साधना से
लौट आ मेरे बटोही
याद कर सद्भावना से
कर चुकी अर्पण समर्पण
आस का दीपक जलाकर
रूप तकता भाव दर्पण
प्यास उद्दीपक बनाकर
मीत खुलके कर रही
फ़रियाद अपनी कामना से
लौट आ मेरे बटोही
याद कर सद्भावना से
-डॉ उमेश कुमार राठी