कैसे उसकी मोहब्बत को बयां करूँ?
अक्सर मेरे अल्फाज़ कम पड़ जाते हैं
मैं चप्पल पहनकर भी धूप में चलने से डरता हूँ
और वो नंगे पाँव भी मेरे लिए कांटों पर चल जाता है
मैं हार कर बैठ जाता हूँ छोटी-छोटी मुसीबतों से भी
और वो मेरे लिए पहाड़ों से भी टकरा जाता है
बोलता वो कुछ नहीं, चुप रहता है
मेरे सो जाने के बाद, मेरे पास आता है
सर पर रख हाथ, मुझ पर प्यार लुटाता है
हर जगह माँ की ममता बोलती है साहब
और अक्सर वो इंसान,
कहीं पीछे ही रह जाता है
हाँ जनाब,
वो शख़्स बाप कहलाता है
वो बच्चों को कामयाब तो बनाता है
पर अक्सर उसका नाम,
कहीं पीछे ही रह जाता है
हाँ जनाब,
वो शख़्स बाप कहलाता है
-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक,
कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल, पठानकोट,