एवरेस्ट पर परचम
फहराने वाली
आजादी का
दंभ भरने वाली
आसमान में उड़ने वाली
हर मुश्किल से
जूझने वाली
मुझसे नजरें मिला
आज सच सच बता
क्या सही मायने में
तुझे मिल गई आजादी?
सुनसान सड़कों पर
भरी दुपहरी में
अंधेरी राहों पर
चलते हुए
क्या तुझे डर
नहीं लगता
क्या तेरा मन
नहीं सिहरता
क्या दबे पांव अब
कोई तेरा
पीछा नहीं करता
किसी अजनबी संग
हंसकर बोलते
बतियाते देख
क्या कोई तुझ पर
तंज नहीं कसता
किसी काम से
कहीं बाहर रहने पर
या देर रात
घर लौटने पर
कानाफूसी नहीं होती
नोंच खाने वाली आंखे
क्या तुझे अब नहीं घूरती
क्या तेरी आत्मा
नुकीले प्रश्नों से
अब नहीं बिंधती
अच्छा यह बता
क्या तेरी चुप्पी
मायने रखने लगी है
तेरी ख्वाहिशों की
कद्र होने लगी है
तेरे पांव में बंधी
रस्मों की जंजीरें
क्या काट दी गई हैं
झूठ मत बोलना
मैंने देखा है
तुझे आज भी
डरते सिहरते हुए
रात के अंधेरे में
तेजी से चलते हुए
भरी दुपहरी में
मुड़ मुड़कर
पीछे देखते हुए
पेशानी पर खींची
दहशत की लकीरें
भयाक्रांत कदम
सहमी नजरें
पसीने से तर जिस्म
अभी तक याद है
तेरी ख्वाहिशों की कब्र
किसने खोदी है
क्यों और कब खोदी है
तुझे भी पता है
मुझसे नजरें मत चुरा
सच-सच बता
क्या सही मायने में
तुझे मिल गई
पूरी आजादी?
-मीरा सिंह ‘मीरा’
+2 महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमरांव, बक्सर, बिहार- 802119