डॉ. निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
जय हनुमंत संत हितकारी,
दुख हरन सुख के भंडारी।
शिव-अंश बजरंगी बलवाना,
राम दुलारे, गुणों का खजाना।।
सिंधु लांघि गए बिना ही बानी,
सिया-सुधा लाई प्रीति निशानी।
लक्ष्मण हेतु संजीवनी लाए,
द्रोणाचल को हाथ उठाए।।
रावण दल में हाहाकार,
हनुमत वीर करें संहार।
अग्नि लगाई लंका भारी,
सत् पर न्योछावर बलिहारी।।
पर्वत फेंके बाण न लागे,
जिस तन लोहा न कोई भागे।
वज्र देह वायु सुत प्यारे,
ब्रह्म, विष्णु करें गुण गाए।।
शुरू हुई जब बाल कहानी,
लगा सूरज को रोटी जानी।
उड़ चले नभ में नन्हे पग से,
चौंके देव, थर्राए रग-से।।
इंद्र ने मारा वज्र प्रचंडा,
गिरा बालक जैसे हो छंदा।
पवन-रोष में गया समाना,
सृष्टि रुकी, न चला जमाना।।
ब्रह्मा बोले— यह तो लीला,
यह तो शक्ति, शिव की पीढ़ा।
वरदानों से भर दी झोली,
बजरंगबली बन गए टोली।।
राम चरण में सिर झुकाया,
भक्ति-सिन्धु जब लहराया।
सुग्रीव को तब दिया भरोसा,
दुःख का फोड़ा किया खरोचा।।
बालि से रण किया अकेला,
पर्वत जैसा वीर झुकेला।
राम-सखा, सेवक भी प्यारा,
शक्ति-सिंधु, संकट हारा।।
जाकर सीता का पता लगाया,
अशोक वाटिका रच दी माया।
रावण दरबार में हुंकारा,
बोल उठी लंका— यह न्यारा!
पूंछ जलाकर किया उजाला,
लंका जलती, बना उजियाला।
फिर भी सीता को दी आशा,
“राम करेंगे तेरा विनाशा!”।
लक्ष्मण जब मूर्छित छाए,
राम व्याकुल नीर बहाए।
उड़ चले फिर पर्वत लेने,
देव न रोक सके उन केने।।
पूरा पर्वत साथ उठाया,
जीवन का दीपक फिर जलाया।
राम बोले- तू प्रिय मुझको,
तू ही जीवन, तू ही उजास को।।
जो जन सुमिरन करे दिन-रैना,
उस पर कृपा करें हनुमाना।
भूत-पिशाच निकट न आवे,
राम-नाम जो मन में लावे।।
परीक्षा में जो पास कराए,
बुरे स्वप्न में बचने आए।
तू ही दवा, तू ही सहारा,
तू ही संकट-मोचन हमारा।।
अष्ट-सिद्धि नव-निधि के दाता,
जन की पीड़ा हरने आता।
जय श्रीराम जहाँ पर गूँजे,
वहाँ हनूमान शीश में पूँजे।।
रामदूत अतुलित बलधामा,
अंजनि-पुत्र, पवनसुत नामा।
सब पर तेरी कृपा बनी हो,
शरण तुम्हारी सदा लगी हो।।
दोहा
“हनुमान बिना राम नहीं, राम बिना क्या ठौर।
जो भजे मन से उन्हें, तज दे संकट घोर।”