मनुष्य जीवन अनमोल है: डॉ. आशा सिंह सिकरवार

समीक्षक
डॉ. आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद

मैंने जब लेखक डॉ. ब्रजेश वर्मा का जलन उपन्यास (Novel) पढ़ा उसके बाद गहन चिंतन किया और मुझे लगा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समीक्षात्मक आलेख लिखने की बजाय खुले दिमाग से विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। आज समाज कहां खड़ा है? बदलाव की प्रक्रिया में कितना बदला है?

हम तालाब से समन्दर में उतरेंगे तब  समझ पायेंगे। स्त्री-पुरूष संबंधों को समझने का प्रयास करना चाहिए। एक दूसरे को दोषारोपण करने से, छींटाकशी करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि बात और बिगड़ जायेगी। दोनों को ही अपने भीतर मनुष्यता की खोज करनी होगी।

भारतीय समाज में परंपरागत वैवाहिक संबंध खंडित हुए हैं। ये सच है कि आज स्त्री – पुरुष दोनों ही अपने लिए सुखद जीवन की परिकल्पना करते हैं। उसमें असफल रहे हैं।

उपन्यास का आरंभ एक नरसंहार की घटना से होता है। उपन्यास का नायक माधव एक रिपोर्टर है। नरसंहार की रिपोर्टिंग करने जाता है। जब रिपोर्ट अखबार में प्रकाशित होती है तब उस पर उसका नाम न होकर अखबार के चीफ का नाम होता है जिसे रिपोर्टिंग का पूरा श्रेय मिल चुका होता है। माधव से अपने साथ किया गया अन्याय बर्दास्त नहीं होता है। उपन्यास में लेखक ने नरसंहार का वर्णन नहीं किया है।जो होना चाहिए था अभिव्यक्ति के खतरे उठाने से लेखक बचा है। गरीब वर्ग का एक जगह संक्षिप्त विवरण मिलता है जहां नरसंहार हुआ वहां की रिपोर्टिंग हुई थी तो परिवेश, विवरणात्मक चित्र होने चाहिए थे। जिसके कारण ये घटना अविश्वास लगती है।

आज मीडिया की भूमिका असंवेदनशील हो गई है। मीडिया सच छिपा रहा है। वह भी सत्ता, व्यवस्था का गुलाम है। या कुछ न बोल पाने के पीछे भय भी है।

आज शोषण कहां नहीं है?  किसी भी क्षेत्र में देखें, वहां ऊंच पदाधिकारी अपने नीचे कार्य कर रहे कर्मचारियों का, व्यक्ति का शोषण कर रहा है। हर व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष अपने कामकाजी स्थल पर शोषित है। वह चुपचाप सह रहा है क्योंकि आज रोजगार की समस्या हर व्यक्ति के समक्ष सवाल बनकर खड़ी है। भ्रष्टाचार व्यवस्था में इस तरह पैठ चुका है कि सच और झूठ की लड़ाई लड़ना मुश्किल ही नहीं संघर्ष शील हो गई है।

उपन्यास का नायक माधव एक महत्वाकांक्षी युवक है।उसे अपनी मेहनत का फल नहीं मिलता है तो वह हताश हो जाता है। ये हताशा भीतर ही भीतर दीमक की तरह चाट जाती है। वह दिन रात शराब में डूब जाता है।

घर पर पत्नी संतना उसका इंतजार कर रही होती हैं। जिससे उसने प्रेम विवाह किया है। देर से घर आने का सिलसिला महीनों, सालों चलता है। रोज खाना फेंकना पड़ता है। शराब में धुत्त घर आकर सो जाता है। आज ये हर घर की कहानी है।

नवयुवक जरा सी बात पर निराश, हतास हो रहा है। उसके भीतर परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत नहीं है। शराब में नयी पीढ़ी डूबती जा रही है। माधव एक पढ़ा लिखा शिक्षित नव युवक है इसके बावजूद वह अपने करियर की असफलताओं के कारण अपने वैवाहिक जीवन को दाब पर लगा देता है। उपन्यास में संतना का संघर्ष चुप्पी में सिमट गया है वह चुप रहती है दोनों के बीच आपसी संवाद बहुत कम हैं, हालांकि स्त्री कभी चुप नहीं रहती है लड़ झगड़ कर वह अपना अधिकार मांगती है। और अपना विरोध भी दर्ज कराती है। लेखक यहां भी कथा का विकास नहीं कर पाया है। मैं इसे उपन्यास नहीं मान रही हूं। एक कहानी है जो सीख देती है। उपन्यास का कथ्य, शिल्प गौण है, इसलिए ये पुस्तक मात्र एक कहानी बन कर रह गई है।

लेखक माधव और संतना दोनों ही पात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाया है। दोनों का व्यक्तित्व खुलकर सामने नहीं आ पाया है।

आज नगरों-महानगरों में देखते हैं कि अकेलेपन की समस्या बढ़ती जा रही है। संतना पूरे दिन अकेली रहती है पर न किसी से बात करती है न घूमने जाती है।पूरे दिन अकेली और फिर रात को खाना बना कर अपने पति का इंतजार करती है। पंरपरागत भारतीय नारी के रूप में सामने आती है। लेखक संतना के चरित्र को पारदर्शी दिखाने के लिए एक और पात्र उपस्थित होता है जिसका नाम समीर है।

समीर जो माधव का दोस्त है वह भी एक सज्जन पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। 

संतना माधव को नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल करा देती है उसके ठीक होने की अभिलाषा लिए एकाकी जीवन काटती है। अपने माता-पिता के घर भी नहीं जाती है। समीर के घर आने जाने लगती है। समीर की मां द्वारा लेखक सुरक्षा की बात उठाता है। कोई भी स्त्री दूसरी स्त्री को उसके पति के होते हुए दूसरे से विवाह की बात नहीं करेगी और ऐसे समय जब उसका पति नशा मुक्ति केंद्र में जिंदगी और मौत से लड़ रहा हो। संतना का समीर के साथ विवाह इस उपन्यास का उद्देश्य सिद्ध नहीं कर पाया है। भारतीय स्त्री चाहे कितनी भी कठोर हो जाए पर इतनी निर्दयी नहीं हो पाई है कि बीमार पति को छोड़ कर दूसरा विवाह कर लें।

आज हम डिजिटल युग में देख सकते हैं कि जैसे ही कोई तीज त्यौहार होता है स्त्रियां बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। चाहे करवा चौथ व्रत हो या तीज़ का व्रत। ये सभी स्त्रियां पढ़ी लिखी हैं बावजूद अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। ये सभी स्त्रियों में से शायद ही कोई स्त्री होगी जिसने अपने पति से मार न खाई हो या गालियां न खाईं हों। समाज कितना बदला है और स्त्रियां कितनी समझदार हुई है? कितनी स्वाबलंबी? 

स्त्रियां अपने शराबी पति के हाथों पानी पी कर व्रत तोड़ती है और लंबी उम्र की कामना करती है। जबकि पति स्वयं लम्बी उम्र के बारे में कभी नहीं सोचता है। न शराब छोड़ता है।

लेखक ने स्त्री सुरक्षा का प्रश्न उठाया है। आज सुरक्षा का अर्थ भी बदल गया है। विवाह सुरक्षा कवच नहीं है। एक पुरुष को छोड़ कर दूसरे पुरुष से बंध जाना कभी भी सुरक्षा का मापदंड नहीं हो सकता है। प्रेम के कारण बंध सकती है पर सुरक्षा मिलेगी इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता है। आज की स्त्री पढ़ी लिखी है तो वह परिस्थितियों वश अकेली रह जाती है तो वह आत्म निर्भर बनेगी। 

पुरुष बदलने से स्थितियां नहीं बदलती संतना भी पहले हालात से लड़ रही थी अपने पति की शराब छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास करती दिखाई देती है। अपनी एकत्र की गई पूंजी भी माधव की दवा में लगा दी।

संतना का समीर से विवाह ये बात अखरती है। समीर का संतना के साथ कहीं भी भावानात्मक लगाव दिखाई नहीं देता है। ऐसे में विवाह से पहले दोनों के बीच शारीरिक संबंध समझ में न आने वाली बात है क्योंकि संतना अपनी भावनाओं में कभी बहती दिखाई नहीं देती, अपने पति के साथ भी, न टूटती हुई। संतना एक सशक्त पात्र के रूप में सामने आती है।

भारतीय समाज में स्त्री आज भी अपने शराबी पति को रात में खाना परोसती है। जूते उतारती है, कंवल उड़ाती है। इतना ही नहीं गाली खाती हैं मार पीट तक सहती हैं। फिर भी तलाक नहीं लेती हैं। स्त्री का इतना उदार ह्रदय अभी कठोर नहीं हुआ है? न वह समझदार हुई है कि दूसरा विवाह रचा लें। क्योंकि वह जानती है दूसरा पुरूष उसे हमेशा संदेह की नजर से देखेगा, यही कारण है स्त्री ने अकेला रहना स्वीकार किया है दूसरा विवाह नहीं। इसके पीछे का यही कारण है कि स्त्री पुरुष की तुलना में अधिक संवेदनशील है भावानात्मक है स्नेही है।

माधव पूरी कथा में एक असंवेदनशील पुरुष के रूप में आता है, जिसे न स्वयं से प्रेम है, न अपनी पत्नी संतना से। घर की जिम्मेदारी से पलायन कर के शराब पीकर घर लौटता है। अंत में जब मृत्यु के निकट पहुंचा तब अपनी पत्नी की याद आती है। अंत में संतना क्या निर्णय लेती है? उपन्यास पढ़कर जान पायेंगे।

उपन्यास बहुत छोटे फलक पर अपनी कथा वस्तु गढ़ता है। पात्र सीमित हैं भाषा सरलता के शिल्प में गुंथी हुई है। उपन्यास का उद्देश्य स्त्री को सुरक्षा देने में लेखक सफल रहा है। पुरुष प्रधान समाज में पुरुष के चरित्र को महान बनाने में लेखक से चूक हुई है वह स्त्री के प्रति संवेदनशील नहीं हो सका है। अंत में कई सवाल पाठक के मन में रह जाते हैं।

इस उपन्यास पर चर्चा करने का उद्देश्य यही है कि आज का नवयुवक अपने जीवन और पारिवारिक जीवन के प्रति, समाज के प्रति जागृत हो। शराब पीकर अपना जीवन बर्बाद न करें। जीवन अनमोल है इसकी कद्र करनी चाहिए। करियर जीवन से बड़ा नहीं हो सकता है। करियर के उतार चढ़ाव से जीवन को मृत्यु की तरफ नहीं बल्कि सम्भावनाओं की तरफ मोड़े। ये पुस्तक नवयुवकों के लिए संदेश है कि शराब को फैशन की तरह न पीएं। अपने जीवन को जानलेवा अनेक बीमारियों से बचाएं।