एक दिन उसने कहा-
तुम तुम्हारे पास अमानत हो मेरी
यूँ ही नहीं
कोई सौंप देता अपनी अमानत
किसी को भी
जहाँ नम होती है
यकीन की जमीन
प्यार का पौधा पनपता है वहीं
इस तरह उसने मुझे
अपनी अमानत मानकर
बना दिया मुझे ही उसका संरक्षक
स्नेह की सरिता में
जब उठती हैं
लगाव की लहरें
तभी खिलता है प्रेम-पंकज
अब यह जिम्मेदारी बनती है मेरी
मुझे ही ख़ुद को संभालकर-सहेजते हुए
सुरक्षित रखनी है उसकी धरोहर
पता नहीं कब
किस दिन आकर?
वह हँसकर कहे मुझसे
कि लाओ दे दो मुझे
मेरी अनमोल अमानत
-जसवीर त्यागी