पर्यावरण अगर है हमारा,
तो फिर क्यूँ ऐसे तुमने है बिगाड़ा
पानी में तूने गन्दगी को बाँटा
पेड़ को जैसे अंधाधुँध काटा
करता है तू मेरा-मेरा
कहाँ करेंगे पंछी बसेरा,
जिस धरती पर अमृत पिया
उसी को तूने नष्ट किया
चैन की नींद सो के तूने,
पर्यावरण को कष्ट दिया
कपड़े-जूते खाल की पहने,
कहाँ जाएगा अब तू रहने
जब न आएगी साँस,
तब भागेगा किस के पास?
पाँच तत्व का यह शरीर,
करेगा तुझे इतना गम्भीर
घर में रह जाएगा बंद
कोई न होगा तेरे संग,
खाता है तू जो पकवान
जाती है बेज़ुबानों की जान,
ईश्वर ने सभी को बनाया संग
मत कर जीवों को तंग,
डर कर क्यूँ बैठा है घर में
चूहा हो जैसे पिंजरे में,
तूने न की परवानगी
अब देख क़ुदरत की नादानगी
पशु-पक्षी, पेड़ हमारी ऐसी दात है
अगर तुम समझ जाओ तो फिर
क्या बात है क्या बात है
-पूजा पनेसर
लुधियाना, पंजाब