सोनल मंजू श्री ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश
प्रथम पूज्य गणेश का
व्यक्तित्व है निराला।
गणपति स्वयं है ज्ञान की
पूर्ण पाठशाला।।
सोच को रखो बड़ी,
उनका बड़ा मस्तक सिखाए।
सूप से लम्बे कान समझाते,
व्यर्थ वार्ता भीतर ना समाए।।
एकदंत की सीख ये,
वस्तु का सही सदुपयोग हो।
छोटी-छोटी आँखें बतलाती,
सूक्ष्मता से जाँचकर ही निर्णय लो।।
बड़ा उदर हमें बताए,
भोजन के साथ बातों को भी पचाना।
हिलती-डूलती सूंड सिखाती,
अपना जीवन सदैव सक्रिय बिताना।।
चार भुजाएं दिखाती
कर्म और सहायक स्वभाव को।
मूषक सवारी सिखाती
दुर्बल देह में इच्छाशक्ति के भाव को।।
हाथ की कुल्हाड़ी संकेत दे,
मोह के बन्धनों को काटना।
दूजे हाथ की रस्सी कहे,
अपने लक्ष्य को नजदीक राखना।।
आशीर्वाद का हाथ कहे,
दया, धर्म और कल्याण करो।
हाथ में रखे मोदक जैसे
जीवन में श्रद्धा और विश्वास भरो।।