बेटियाँ जब बड़ी हो गयीं
मोतियों की लड़ी हो गयीं
आपदा जब भी आती दिखी
सामने वे खड़ी हो गयीं
घोर तम छाँटती ही रहीं
प्रज्ज्वलित फुलझड़ी हो गयीं
मूक गुड़िया सरीखी पलीं
सुख की मंगल घड़ी हो गयीं
चल दीं सजधज के ससुराल को
प्रेममय हथकड़ी हो गयीं
दो कुलों की रखी अस्मिता
माल मुक्ता जड़ी हो गयीं
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर, विकासनगर,
लखनऊ, उत्तर प्रदेश- 226022