आशा पांडेय ओझा
राजस्थान
हर घड़ी आपने आज़माई वफ़ा
पर ज़रा भी नहीं डगमगाई वफ़ा
मंजिलें दूर, दुश्वारियां भी कई
पर कभी भी नहीं लड़खड़ाई वफ़ा
टिक सकी फिर कहाँ बेवफ़ा तीरगी
रोशनी बन अगर झिलमिलाई वफ़ा
निभ रही यूँ मेरे आपके दरमियां
क्योंकि मैंने सदा ही निभाई वफ़ा
टूटते वायदे टूटते कायदे
बस ज़रा सी कहीं दे दिखाई वफ़ा
अब सियासत घरों तक चली आ रही
काश करने लगे रह नुमाई वफ़ा
एक अहले सुख़न से है ‘आशा’ यही
देश से कर सके हर रुबाई वफ़ा