ज़िंदगी मझधार की पतवार है किसको पता?
किसके हिस्से में यहां पर खार है किसको पता?
कर सको पूरा रखो तुम शौक़ उतना ही करीब,
शौक़ मसलन इश्क़ में बाजार है किसको पता?
भूलकर जाना कभी मत आदमी की शक्ल पर,
कौन अच्छा या बुरा क़िरदार है किसको पता?
वक्त कितना भी बुरा हो कट ही जाता है यहां,
वक्त से लड़ना मगर अधिकार है किसको पता?
धर्म को धंधा बना जो बांटते हैं मुल्क को,
वो ही असली देश का गद्दार है, किसको पता?
सच बना रहता हमेशा, झूठ गर साबित न हो,
हां! वही सच झूठ का आधार है किसको पता?
आज अधिकारों से वंचित जी रही रकमिश मगर
आम जनता ही यहां सरकार है किसको पता?
रकमिश सुल्तानपुरी