क्या हो जब कोई अपना चला जाए
अधखुली आँख से सपना चला जाए
मैं पुकारता ही रह जाऊं नाम तेरा
मेरा बिन तेरे ऐसे तड़पना चला जाए
ख्वाहिशों का दामन बहुत बड़ा है
अनबुझी प्यास से कलपना चला जाए
रह-रह के तेरी यादें मज़बूर करती है
क्या हो कि तेरा नाम जपना चला जाए
‘उड़ता’ ना हो कि कोई अपना चला जाए
पूरा हो हर ख्वाब ना कोई सपना चला जाए
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा- 124103
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